Saturday, July 24, 2010

छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.


छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.
सब बादल में उभरीं शक्लें, बस एक ख्वाब सुहाना बाबा.

हसरत में दीदार की तेरी, दीवाने बैठे दम साधे,
आज न दोगे क्या तुम इनकी नज़रों को नज़राना बाबा.

किस मंजिल के सब हैं राही, कहाँ लगा है आना जाना,
जब तुम को पड़ जाय पता ये हमको भी बतलाना बाबा.

अपनेपन की खोज अबस है, सबके, इस खुदगर्ज़ शहर में,
राग हैं अपने, ढपली अपनी, अपना गाल बजाना बाबा.

जो औरों के दुःख में तडपे, सब उसको अहमक माने हैं,
जो दुःख सबके यहाँ भुनाए, सिर्फ वही है स्याना बाबा.

क्या शर्माना,आँख झुकाना, इस हमाम में सब नंगे हैं,
आप भी आओ, खुल कर खेलो, ठीक नहीं ये ना ना बाबा.

सिर्फ मसलहत के सब साथी आप अबस हैरान न होना,
अंधों लंगड़ों की यारी में तुम मत जान सुखाना बाबा.

अश्क बहा लें ,रो लें, गा लें, या कि खमोशी में खो जाएँ,
सब इजहारे इश्क का ठहरा एक न एक बहाना बाबा.

हम मुजरिम उल्फत के ठहरे, बस नफ़रत के ही काबिल हैं,
और कोई इल्जाम अगर हों, वो भी नाम लगाना बाबा.

मान रखें जो बस मिटटी का, सोने के साईल न बने
ऐसे मतवालों से मिलता अपना बंस घराना बाबा.

चादरिया कबीर की मैली हो न कहाँ ये मुमकिन था ,
रोज़ ब रोज़ कहाँ तक करते धोना और सुखाना बाबा..

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