Saturday, July 24, 2010

फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.


शहरे तमन्ना सूना सूना आँखें भी पथरायी सी.
चाँद न तारे, बादल कारे, तनहाई तनहाई सी.

आज अचानक चौबारे से अल्बम इक हाथ आया है,
जाने क्या क्या बोल रही हैं तस्वीरें धुंधलाई सी.

पोर पोर सब दूख रहे हैं, और बदन ये टूटे है,
मन के आँगन में चलती है यादों की पुरवाई सी.

जब से बिछुड़े दर्द अजब सा ऐसा घुला रग़े जाँ में,
ज़ब्ते फुगाँ से जान पे बनती, रोयें तो रुसवाई सी.

मरजे इश्क का कुछ न मदावा, हर नुस्खा बेअसर रहा,
साथ दवा के जाती दिल की बेचैनी गहराई सी.

जाने चमन में आज गुलों ने कैसा मंतर फूंका है,
घूम रही है आज सुबह से, देख, हवा सौदाई सी.

चैनो सुकूं सिमटा जैसे सच सिमट रहा है दुनिया से,
और मुसलसल बेचैनी है बढ़ने लगी बुराई सी.

नींद नयन से दूर, दमकती सूरते जानां यूँ मन में,
सतहे आब से हौले हौले जैसे हटती काई सी.


आप बताएं कैसे जानें, क्या सच है क्या झूठ यहाँ,
फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.

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