Monday, September 20, 2010

ज़ुबानों से कहिये न कोई दखल दें.

मुझे वो तवज्जुह न कुछ आज कल दें.
लुटी उम्र जिन पर न वो चार पल दें.
निगाहें करेंगीं निगाहों से बातें,
ज़ुबानों से कहिये न कोई दखल दें.
बदल पाना दुनिया कठिन यूँ भी काफी,
चलो यूँ करें आज खुद को बदल दें.
मेरे रंजो गम तो वही हैं पुराने,
कहाँ से तुम्हें रोज़ ताज़ा ग़ज़ल दें.
यहाँ सबकी नज़रें को खलने लगे हम,
वो वक़्त आ गया है कहीं और चल दें.
पसंद उनको खुद के सिवा कुछ नहीं है,
हटा लो कहीं वे न कलियाँ मसल दें.
ज़हर ही ज़हर हैं सभी ने पिलाये,
और उम्मीद करते हैं अमरित उगल दें.
ये माना कि बोये बबूल आप ने हैं,
हमारी दुआ है तुम्हें ये भी फल दें.
अँधेरे अँधेरे बहुत बामो दर हैं,
अगर हो सके, रौशनी इन पे मल दें.
मसाईल मसाईल क़दम दर क़दम हैं
और इसरार उसपे कि हम कोई हल दें.
चलो आहो जारी कहीं और कर लें,
न नींदे अमीरे शहर में खलल दें.
घराना हमारा है विषपायियों का,
अमृत आप रक्खें हमें सब गरल दें.
न ये ऐशो इशरत हमेशा रहेगी,
खुदारा उन्हें आप इतनी अक़ल दें.
संभल के ज़रा गुफ्तगू उनसे कीजे ,
वो हर बात को ही अजब सी शक़ल दें.

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