Saturday, July 24, 2010

डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,


महफ़िल तो उठ गयी है चलो अब तो घर चलें.
है मौत अनक़रीब चलो सब शहर चलें.


सूरज तपेगा आग लगेगी ज़मीन में,
मंजिल की है मुराद अगर रात भर चलें.


दुनिया न रखती याद बड़े से बड़ों को यूँ,
अच्छा है आ गए तो कोई काम कर चलें.


मिलना बदा अगर तो मिलेगा ज़रूर वो,
वर्ना तो सब फ़िज़ूल भले ताउमर चलें.


अमृत तो बस नसीब है अहले नसीब को,
हिस्से में अपने जो है पियें वो ज़हर चलें.


डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,
है खौफ बेपरी का फलक में अगर चलें.

3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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  2. dhanyvad mitron, vo kahte hain -pyar ki duniya me ye pahla kadam, aate aate aayga hamko khayal, jaate jaate bekhayali jaygi.

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