Friday, July 30, 2010

अच्छा है न सुना हमें सखे गाँव का हाल !

खेत बने कालोनियां सूखे सारे ताल !

अच्छा है न सुना हमें सखे गाँव का हाल !

नारेगा गा गा बने अब सैयां सरपंच !

छुटा कलेवा खेत का करें शहर में लंच !

पूज्य समझ इसको सभी मन में रहे उतार !

भरते भ्रष्टाचार से भूरि भूरि भण्डार !

सोन चिड़ी के काट कर पंख धरे परदेस !

भून रहे तंदूर में अच्छा खासा देस

बन्दर मिल कर नोचते एक एक अब डाल !

रब्बा अब इस पेड़ को तू ही साज संभाल !

Thursday, July 29, 2010

फख्र करता है बादशाही का,

फख्र करता है बादशाही का,

कुछ तो अफ़सोस कर तबाही का,

आस्तीनें कुछ और कहती हैं

और दावा है बेगुनाही का.

जाम पी पी के तुम निढाल हुए

इसमें क्या दोष है सुराही का.

वक़्त समझाएगा तुझे एक दिन,

फ़र्ज़ क्या क्या है सरबराही का. (सरबराही-नेतृत्व)

सिर्फ करतब दिखाते फिरते हैं,

शौक़ उनको है वाह वाही का

तुम तो कप्तान मुन्तखब थे क्यों, (मुन्तखब-चुने हुए)

काम करने लगे सिपाही का.

जाएँ काजल की कोठरी में क्यों

खौफ जिनको है रू-सियाही का. (रू-सियाही कामुंह काला होने का)

Saturday, July 24, 2010

डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,


महफ़िल तो उठ गयी है चलो अब तो घर चलें.
है मौत अनक़रीब चलो सब शहर चलें.


सूरज तपेगा आग लगेगी ज़मीन में,
मंजिल की है मुराद अगर रात भर चलें.


दुनिया न रखती याद बड़े से बड़ों को यूँ,
अच्छा है आ गए तो कोई काम कर चलें.


मिलना बदा अगर तो मिलेगा ज़रूर वो,
वर्ना तो सब फ़िज़ूल भले ताउमर चलें.


अमृत तो बस नसीब है अहले नसीब को,
हिस्से में अपने जो है पियें वो ज़हर चलें.


डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,
है खौफ बेपरी का फलक में अगर चलें.

छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.


छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.
सब बादल में उभरीं शक्लें, बस एक ख्वाब सुहाना बाबा.

हसरत में दीदार की तेरी, दीवाने बैठे दम साधे,
आज न दोगे क्या तुम इनकी नज़रों को नज़राना बाबा.

किस मंजिल के सब हैं राही, कहाँ लगा है आना जाना,
जब तुम को पड़ जाय पता ये हमको भी बतलाना बाबा.

अपनेपन की खोज अबस है, सबके, इस खुदगर्ज़ शहर में,
राग हैं अपने, ढपली अपनी, अपना गाल बजाना बाबा.

जो औरों के दुःख में तडपे, सब उसको अहमक माने हैं,
जो दुःख सबके यहाँ भुनाए, सिर्फ वही है स्याना बाबा.

क्या शर्माना,आँख झुकाना, इस हमाम में सब नंगे हैं,
आप भी आओ, खुल कर खेलो, ठीक नहीं ये ना ना बाबा.

सिर्फ मसलहत के सब साथी आप अबस हैरान न होना,
अंधों लंगड़ों की यारी में तुम मत जान सुखाना बाबा.

अश्क बहा लें ,रो लें, गा लें, या कि खमोशी में खो जाएँ,
सब इजहारे इश्क का ठहरा एक न एक बहाना बाबा.

हम मुजरिम उल्फत के ठहरे, बस नफ़रत के ही काबिल हैं,
और कोई इल्जाम अगर हों, वो भी नाम लगाना बाबा.

मान रखें जो बस मिटटी का, सोने के साईल न बने
ऐसे मतवालों से मिलता अपना बंस घराना बाबा.

चादरिया कबीर की मैली हो न कहाँ ये मुमकिन था ,
रोज़ ब रोज़ कहाँ तक करते धोना और सुखाना बाबा..

फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.


शहरे तमन्ना सूना सूना आँखें भी पथरायी सी.
चाँद न तारे, बादल कारे, तनहाई तनहाई सी.

आज अचानक चौबारे से अल्बम इक हाथ आया है,
जाने क्या क्या बोल रही हैं तस्वीरें धुंधलाई सी.

पोर पोर सब दूख रहे हैं, और बदन ये टूटे है,
मन के आँगन में चलती है यादों की पुरवाई सी.

जब से बिछुड़े दर्द अजब सा ऐसा घुला रग़े जाँ में,
ज़ब्ते फुगाँ से जान पे बनती, रोयें तो रुसवाई सी.

मरजे इश्क का कुछ न मदावा, हर नुस्खा बेअसर रहा,
साथ दवा के जाती दिल की बेचैनी गहराई सी.

जाने चमन में आज गुलों ने कैसा मंतर फूंका है,
घूम रही है आज सुबह से, देख, हवा सौदाई सी.

चैनो सुकूं सिमटा जैसे सच सिमट रहा है दुनिया से,
और मुसलसल बेचैनी है बढ़ने लगी बुराई सी.

नींद नयन से दूर, दमकती सूरते जानां यूँ मन में,
सतहे आब से हौले हौले जैसे हटती काई सी.


आप बताएं कैसे जानें, क्या सच है क्या झूठ यहाँ,
फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.