Saturday, May 1, 2010

बुझते हुए चेहरों पर रूहों के बियाबां हैं !

अफसाना मेरा हमदम असबाबे गमे जां है !
वो सुन के परेशां हैं, हम कह के पशेमां हैं !
खामोश निगाहों में आहों के अँधेरे हैं,
बुझते हुए चेहरों पर रूहों के बियाबां हैं !
अय्यार इन्हें दुह लें या काट के खा जाएँ,
अल्लाह की भेड़ें भी सब इनकी बकरियां हैं !
सब उनके महल की हैं तामीर में काम आयीं,
बदहाल गरीबी में बिखरी जो बखरियां हैं !
क्या बात है वो क्योंकर धरती पे उतर आये,
ये राज़ हुआ कुछ कुछ अब सबपे ही अफशां है !

No comments:

Post a Comment