Wednesday, April 14, 2010

प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !

मुखारविन्दु पर जमा खुमार स्वेद विन्दु सा !
है कुन्तलों के मेघ में प्रदीप्त रूप इंदु सा !
शिथिल प्रचंड वेग है न किन्तु देह क्लांत है !
अदम्य कामना विवर्त कर रहे अशांत हैं !
सुरति निवृत्त देह है विश्लथ ज़रा थकान से !
समेट पर तमाम ज्यों रुका विहग उड़ान से !
है यामिनी विगत दिगंत पर उदीय भोर है !
प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !
प्रतीति प्रीति की नयी समस्त बंध तोडती !
रुधिर प्रवाह ऊष्म से शिरा बदन झिंझोड़ती !
ह्रदय की मात्र कामना न रात ये समाप्त हो !
औ रात का हरेक पल अपार प्रीति व्याप्त हो !
मदालसा निगाह से कशिश के गीत बह उठे !
अभी न जाओ छोड़ के, प्रत्येक अंग कह उठे !
ये ज़िन्दगी हसीनतर इसी तरह तमाम हो !
तुम्हार अंक में उषा, तुम्हारे संग शाम हो !
सुहाग की ये शर्वरी प्रणय भरी अनंत हो !
तुम्हार साथ आदि हो, तुम्हारे साथ अंत हो !

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