Friday, April 30, 2010

देख दिन रात संवरने वाले !

देख दिन रात संवरने वाले !
मर न जाएँ तेरे मरने वाले !
हैं तलबगार झलक भर के हम,
हम न तादेर ठहरने वाले !
तूने हर एक कली नोची है,
रंगों बू अब न बिखरने वाले !
माहीगर और जगह ढूंढ कोई,
यां न सैलाब उतरने वाले !
दिल का सौदा था किया तूने भी,
यूँ मुकर जा न , मुकरने वाले !
दिल में जज्बे ही नहीं जब लोगों,
अब न हालात सुधरने वाले !
दे गया रूह को ज़ालिम कोई,
ज़ख्म ता उम्र न भरने वाले !
आप हम सिर्फ नतीजे भुगतें,
कर गए काम तो करने वाले !
खेल मत आबो हवा से ऐसे,
कहते अमराज़ उभरने वाले ! (अमराज़-रोग,मर्ज़,)
डूबनेवाले गए सागर तक,
रह गए पार उतरने वाले !
सहने गुलशन में कई खार सिफत,
खून पीकर हैं निखरने वाले !
दिल को मज़बूत अभी रख प्यारे,
ज़ुल्म हैं और गुज़रने वाले !

Wednesday, April 14, 2010

प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !

मुखारविन्दु पर जमा खुमार स्वेद विन्दु सा !
है कुन्तलों के मेघ में प्रदीप्त रूप इंदु सा !
शिथिल प्रचंड वेग है न किन्तु देह क्लांत है !
अदम्य कामना विवर्त कर रहे अशांत हैं !
सुरति निवृत्त देह है विश्लथ ज़रा थकान से !
समेट पर तमाम ज्यों रुका विहग उड़ान से !
है यामिनी विगत दिगंत पर उदीय भोर है !
प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !
प्रतीति प्रीति की नयी समस्त बंध तोडती !
रुधिर प्रवाह ऊष्म से शिरा बदन झिंझोड़ती !
ह्रदय की मात्र कामना न रात ये समाप्त हो !
औ रात का हरेक पल अपार प्रीति व्याप्त हो !
मदालसा निगाह से कशिश के गीत बह उठे !
अभी न जाओ छोड़ के, प्रत्येक अंग कह उठे !
ये ज़िन्दगी हसीनतर इसी तरह तमाम हो !
तुम्हार अंक में उषा, तुम्हारे संग शाम हो !
सुहाग की ये शर्वरी प्रणय भरी अनंत हो !
तुम्हार साथ आदि हो, तुम्हारे साथ अंत हो !