Sunday, October 17, 2010

आसमाँ से उतर आइये

आसमाँ से उतर आइये
आइये मेरे घर आइये.

फिर न लौटेंगे, वादा करें,
मेरे आँगन अगर आइये.

रिश्ते नाते भुला गर सकें,
शौक़ से फिर शहर आइये.

शौके दीदार परवां चढ़े,
ख़्वाब में रात भर आइये.

मैं हूँ मुश्ताक कहिये कभी,
जाने मन टुक इधर आइये. (टुक-ज़रा)

शीशों की दूकान सजाये बैठे हैं

शीशों की दूकान सजाये बैठे हैं
पत्थर के गुलदान सजाये बैठे हैं.

जिंदा जिस्मों को दहलीज़ दिखाते हैं,
बुत घर में बेजान सजाये बैठे हैं.

जाने क्यों अहबाब सभी कतराते हैं,
हम तो इत्रो पान सजाये बैठे हैं.

रहबर अपनी भटकन से बाहर तो आँय
हम कब से सामान सजाये बैठे हैं.

अहले जुनूं मसरूफ हुए हैं दुनिया में,
आप अबस वीरान सजाये बैठे हैं.

अमनो सुकूँ से बैर है कैसा बतलाओ,
लोग ये क्यूँ बोहरान सजाये बैठे हैं.

कातिल जाने हमसे क्यूँ बेरूख ठहरा,
हम तो जिस्मो जान सजाये बैठे हैं.

Monday, September 20, 2010

बहस कचहरी में काफी है, बस होती सुनवाई ना.

आँखों आँखों रैन बितायी, नींद निगोड़ी आई ना.
एक दिन आओ, फिर मत जाओ, कर भी दो भरपाई ना.

दिल का हाल सुनाएँ कैसे, सब मुंह खोले बैठे हैं ,
बहस कचहरी में काफी है, बस होती सुनवाई ना.

जिसने जितना मौका पाया दोनों हाथ बटोरा है,
आज हिमालय बन बैठे हैं, जो कल तक थे राई ना.

अपने सलोनेपन का गुमां है और गुमां भी कितना है,
काश कि कोई उनके हाथों में दे देता आईना.

बन्सीवाले मेरे कानों को तौफीक़े समाअत दे,
जिसको सुनकर बन जाती है मीरा, मीरा बाई ना.

मौसम कैसा, चाह में उनकी अंग अंग सब दूखे है,
उनके आँगन भी तो बैरन जाके बहे पुरवाई ना.

अब तक आई चमक न हममें, बुझे बुझे से बैठे हैं,
जाने कितनी और लिखी है अपने भाग घिसाई ना.

आ न सको तो ख्वाब में आओ, इतना तो अहसान करो,
जैसे भी हो मेरी हमदम दूर करो तनहाई ना.

ज़ुबानों से कहिये न कोई दखल दें.

मुझे वो तवज्जुह न कुछ आज कल दें.
लुटी उम्र जिन पर न वो चार पल दें.
निगाहें करेंगीं निगाहों से बातें,
ज़ुबानों से कहिये न कोई दखल दें.
बदल पाना दुनिया कठिन यूँ भी काफी,
चलो यूँ करें आज खुद को बदल दें.
मेरे रंजो गम तो वही हैं पुराने,
कहाँ से तुम्हें रोज़ ताज़ा ग़ज़ल दें.
यहाँ सबकी नज़रें को खलने लगे हम,
वो वक़्त आ गया है कहीं और चल दें.
पसंद उनको खुद के सिवा कुछ नहीं है,
हटा लो कहीं वे न कलियाँ मसल दें.
ज़हर ही ज़हर हैं सभी ने पिलाये,
और उम्मीद करते हैं अमरित उगल दें.
ये माना कि बोये बबूल आप ने हैं,
हमारी दुआ है तुम्हें ये भी फल दें.
अँधेरे अँधेरे बहुत बामो दर हैं,
अगर हो सके, रौशनी इन पे मल दें.
मसाईल मसाईल क़दम दर क़दम हैं
और इसरार उसपे कि हम कोई हल दें.
चलो आहो जारी कहीं और कर लें,
न नींदे अमीरे शहर में खलल दें.
घराना हमारा है विषपायियों का,
अमृत आप रक्खें हमें सब गरल दें.
न ये ऐशो इशरत हमेशा रहेगी,
खुदारा उन्हें आप इतनी अक़ल दें.
संभल के ज़रा गुफ्तगू उनसे कीजे ,
वो हर बात को ही अजब सी शक़ल दें.

Saturday, September 11, 2010

मिला न हमको दुबारा वो बेवफा न मिला.

ज़मीर जिसका भी देखा, लहूलुहान मिला.
हरेक रूह पर एक ज़ख्म का निशान मिला.

तलाश हमने बला की तो की मगर अब तक
जो झूठ बोल सके ऐसा आईना न मिला.

तुम्हे तो पाते भी कैसे,तमाम दुनिया में,
खुद अपने आप का अब तक हमें पता न मिला.

कशिश है कैसी रूखे यार में, कहूँ भी क्या,
मिला न कोई जो उस सिम्त देखता न मिला.

उसी की राह निरखते गयी उमर सारी,
मिला न हमको दुबारा वो बेवफा न मिला.

अब और किससे भला करिए कोशिशे निस्बत,
तुम्हारे जैसा, ये दिल, और से मिला न मिला.

कहाँ कहाँ न गए आप से जुदा होके,
कहीं भी ऐसा सुकूंबख्श आस्तां न मिला.

निकल कर चलो चांदनी में नहायें

निकल कर चलो चांदनी में नहायें
ये रातें पलट के फिर आयें न आयें.

सुना है इधर रुख किया यार ने है
चलो रास्तों पर निगाहें बिछाएं.

कहीं गालिबन उसने खोले हैं गेसू,
महकने लगीं भीनी भीनी हवाएं.

अगर आ रहे वो, तो ताखीर क्यूँ है,
गमे हिज्र हम ये कहाँ तक उठायें.

जुबां कुछ,नज़र और कुछ कह रही है,
पसोपेश है, रोयें या मुस्कराएँ.

हैं इस हाले बद के गुनहगार खुद हम.
ये किसने कहा था हमें दिल लगायें,

हकीकत समझना न आसान उसकी,
अदाएं, अदाएं, अदाएं, अदाएं.

सभी कह रहे थे वो सुन लेता दिल की,
गए हार दे दे के हम तो सदायें.

बजा हो, ज़हर ही बिलआखिर वो दे दें,
ज़हर यूँ भी निकलीं हैं उनकी दवाएं.

न कुछ हम कहेंगे, न आंसू, न आहें,
वो अब शौक़ से दिल कहीं भी लगायें.

न पैगाम उसका, न उम्मीद बाक़ी,
कहो तुम ये घर किसकी खातिर सजायें ,

सब गुलामों के न दिखते हैं सलासिल सामने.

देखिये आई है कैसी आज मुश्किल सामने.
दस्तो-पा ज़ंजीर में हैं और मंजिल सामने.

जिस तरह भी चाहिए अब शौक़ से अजमाइए
हमने तो रख ही दिया आप के दिल सामने.

हैं हवाएं भी मुखालिफ, नाखुदा भी नातवाँ,
किश्तियाँ गिर्दाब में हैं और साहिल सामने.

आप हैं आमiदाये तहकीक फिर क्या देर है,
आएगा सब ज़िन्दगी का जो है हासिल, सामने.

देखते हैं फूल शायद कागज़ी हों कामयाब,
कुदरती तो गिर गए गुंचे हैं खिल खिल सामने.

इनके बंधन आत्मा पर हैं ,न धोखा खाईये,]
सब गुलामों के न दिखते हैं सलासिल सामने.

हम खराबे को चले थे जीस्त से मायूस हो,
जग गयी उम्मीद तेरी देख महफ़िल सामने.

उनके पिछवाड़े ही पायीं आंसुओं की खेतियाँ,
जो निहायत दीखते हस्सासो आदिल सामने.

Saturday, August 7, 2010

न है राम पग ऱज न करुणा करों की.

जिसे मंजरे आम पर कौंधना था,,
बनी बर्क जीनत वो जलसाघरों की.

दिलासे दिलाने को बेचैन दिल को,
बचीं चंद यादें सुहाने दिनों की.

सभी को डराती है ईमां परस्ती,
हमें देख कर बेतरह बज़्म चौंकी.

नमी नष्ट कर दे न इनकी लुनाई,
करो फ़िक्र अपने ललित लोचनों की.

लगे चश्मे दिलकश तेरे संगदिल सुन
कि ज्यों कोई वादी हो टूटे दिलों की.

लरजती ज़हन में मुजस्सिम ग़ज़ल बन,
मेरी दिलरुबा,कल्पना शायरों की.

किसी के भी दिल में जगह मिल न पाई,
शहर में न वर्ना कमी थी घरों की.

कली है इसे शाख पर खिलने दीजे ,
सजावट की तोहमत न दें बिस्तरों की.

बना सारा माहौल ऐसा क़फ़स सा,
कि रोते परिंदे हैं किस्मत परों की.

हुए हम तो पत्थर दुआ करते करते,
न है राम पग ऱज न करुणा करों की.

कोई हम सफ़र हो ये कब उसने चाहi,
ज़रूरत उसे सिर्फ थी अनुचरों की.

उम्र गुजरी है मुद्दआ कहते.

सबसे कहते भी हम तो क्या कहते
कैसे उसको भला बुरा कहते.

कौन सा आज तक निहाल किया,
उम्र गुजरी है मुद्दआ कहते.

सारे दीवाने आम खास हुए,
अपनी फरियाद हम कहाँ करते.

सामने आ ही जब गया ज़ालिम,
हमसे कुछ भी नहीं बना कहते.

अब नतीजे दिखाइए साहिब,
यूँ न रहिये कहानियाँ कहते.

कैसे कह दें, ज़बान कटती है,
बेवफाओं को बावफा कहते.

हम हैं अनजान पर उसे ज़ालिम
देख उसके भी आशना कहते.

आप हाकिम हैं जो न कर जाएँ,
आप को हम गरीब क्या कहते.

Friday, July 30, 2010

अच्छा है न सुना हमें सखे गाँव का हाल !

खेत बने कालोनियां सूखे सारे ताल !

अच्छा है न सुना हमें सखे गाँव का हाल !

नारेगा गा गा बने अब सैयां सरपंच !

छुटा कलेवा खेत का करें शहर में लंच !

पूज्य समझ इसको सभी मन में रहे उतार !

भरते भ्रष्टाचार से भूरि भूरि भण्डार !

सोन चिड़ी के काट कर पंख धरे परदेस !

भून रहे तंदूर में अच्छा खासा देस

बन्दर मिल कर नोचते एक एक अब डाल !

रब्बा अब इस पेड़ को तू ही साज संभाल !

Thursday, July 29, 2010

फख्र करता है बादशाही का,

फख्र करता है बादशाही का,

कुछ तो अफ़सोस कर तबाही का,

आस्तीनें कुछ और कहती हैं

और दावा है बेगुनाही का.

जाम पी पी के तुम निढाल हुए

इसमें क्या दोष है सुराही का.

वक़्त समझाएगा तुझे एक दिन,

फ़र्ज़ क्या क्या है सरबराही का. (सरबराही-नेतृत्व)

सिर्फ करतब दिखाते फिरते हैं,

शौक़ उनको है वाह वाही का

तुम तो कप्तान मुन्तखब थे क्यों, (मुन्तखब-चुने हुए)

काम करने लगे सिपाही का.

जाएँ काजल की कोठरी में क्यों

खौफ जिनको है रू-सियाही का. (रू-सियाही कामुंह काला होने का)

Saturday, July 24, 2010

डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,


महफ़िल तो उठ गयी है चलो अब तो घर चलें.
है मौत अनक़रीब चलो सब शहर चलें.


सूरज तपेगा आग लगेगी ज़मीन में,
मंजिल की है मुराद अगर रात भर चलें.


दुनिया न रखती याद बड़े से बड़ों को यूँ,
अच्छा है आ गए तो कोई काम कर चलें.


मिलना बदा अगर तो मिलेगा ज़रूर वो,
वर्ना तो सब फ़िज़ूल भले ताउमर चलें.


अमृत तो बस नसीब है अहले नसीब को,
हिस्से में अपने जो है पियें वो ज़हर चलें.


डरने लगे है अब तो परिंदे उड़ान से,
है खौफ बेपरी का फलक में अगर चलें.

छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.


छोटी सी माया नगरी में, क्या खोना क्या पाना बाबा.
सब बादल में उभरीं शक्लें, बस एक ख्वाब सुहाना बाबा.

हसरत में दीदार की तेरी, दीवाने बैठे दम साधे,
आज न दोगे क्या तुम इनकी नज़रों को नज़राना बाबा.

किस मंजिल के सब हैं राही, कहाँ लगा है आना जाना,
जब तुम को पड़ जाय पता ये हमको भी बतलाना बाबा.

अपनेपन की खोज अबस है, सबके, इस खुदगर्ज़ शहर में,
राग हैं अपने, ढपली अपनी, अपना गाल बजाना बाबा.

जो औरों के दुःख में तडपे, सब उसको अहमक माने हैं,
जो दुःख सबके यहाँ भुनाए, सिर्फ वही है स्याना बाबा.

क्या शर्माना,आँख झुकाना, इस हमाम में सब नंगे हैं,
आप भी आओ, खुल कर खेलो, ठीक नहीं ये ना ना बाबा.

सिर्फ मसलहत के सब साथी आप अबस हैरान न होना,
अंधों लंगड़ों की यारी में तुम मत जान सुखाना बाबा.

अश्क बहा लें ,रो लें, गा लें, या कि खमोशी में खो जाएँ,
सब इजहारे इश्क का ठहरा एक न एक बहाना बाबा.

हम मुजरिम उल्फत के ठहरे, बस नफ़रत के ही काबिल हैं,
और कोई इल्जाम अगर हों, वो भी नाम लगाना बाबा.

मान रखें जो बस मिटटी का, सोने के साईल न बने
ऐसे मतवालों से मिलता अपना बंस घराना बाबा.

चादरिया कबीर की मैली हो न कहाँ ये मुमकिन था ,
रोज़ ब रोज़ कहाँ तक करते धोना और सुखाना बाबा..

फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.


शहरे तमन्ना सूना सूना आँखें भी पथरायी सी.
चाँद न तारे, बादल कारे, तनहाई तनहाई सी.

आज अचानक चौबारे से अल्बम इक हाथ आया है,
जाने क्या क्या बोल रही हैं तस्वीरें धुंधलाई सी.

पोर पोर सब दूख रहे हैं, और बदन ये टूटे है,
मन के आँगन में चलती है यादों की पुरवाई सी.

जब से बिछुड़े दर्द अजब सा ऐसा घुला रग़े जाँ में,
ज़ब्ते फुगाँ से जान पे बनती, रोयें तो रुसवाई सी.

मरजे इश्क का कुछ न मदावा, हर नुस्खा बेअसर रहा,
साथ दवा के जाती दिल की बेचैनी गहराई सी.

जाने चमन में आज गुलों ने कैसा मंतर फूंका है,
घूम रही है आज सुबह से, देख, हवा सौदाई सी.

चैनो सुकूं सिमटा जैसे सच सिमट रहा है दुनिया से,
और मुसलसल बेचैनी है बढ़ने लगी बुराई सी.

नींद नयन से दूर, दमकती सूरते जानां यूँ मन में,
सतहे आब से हौले हौले जैसे हटती काई सी.


आप बताएं कैसे जानें, क्या सच है क्या झूठ यहाँ,
फस्ले बहारां के चर्चे हैं,और कलियाँ कुम्हलाई सी.

Saturday, May 1, 2010

बुझते हुए चेहरों पर रूहों के बियाबां हैं !

अफसाना मेरा हमदम असबाबे गमे जां है !
वो सुन के परेशां हैं, हम कह के पशेमां हैं !
खामोश निगाहों में आहों के अँधेरे हैं,
बुझते हुए चेहरों पर रूहों के बियाबां हैं !
अय्यार इन्हें दुह लें या काट के खा जाएँ,
अल्लाह की भेड़ें भी सब इनकी बकरियां हैं !
सब उनके महल की हैं तामीर में काम आयीं,
बदहाल गरीबी में बिखरी जो बखरियां हैं !
क्या बात है वो क्योंकर धरती पे उतर आये,
ये राज़ हुआ कुछ कुछ अब सबपे ही अफशां है !

Friday, April 30, 2010

देख दिन रात संवरने वाले !

देख दिन रात संवरने वाले !
मर न जाएँ तेरे मरने वाले !
हैं तलबगार झलक भर के हम,
हम न तादेर ठहरने वाले !
तूने हर एक कली नोची है,
रंगों बू अब न बिखरने वाले !
माहीगर और जगह ढूंढ कोई,
यां न सैलाब उतरने वाले !
दिल का सौदा था किया तूने भी,
यूँ मुकर जा न , मुकरने वाले !
दिल में जज्बे ही नहीं जब लोगों,
अब न हालात सुधरने वाले !
दे गया रूह को ज़ालिम कोई,
ज़ख्म ता उम्र न भरने वाले !
आप हम सिर्फ नतीजे भुगतें,
कर गए काम तो करने वाले !
खेल मत आबो हवा से ऐसे,
कहते अमराज़ उभरने वाले ! (अमराज़-रोग,मर्ज़,)
डूबनेवाले गए सागर तक,
रह गए पार उतरने वाले !
सहने गुलशन में कई खार सिफत,
खून पीकर हैं निखरने वाले !
दिल को मज़बूत अभी रख प्यारे,
ज़ुल्म हैं और गुज़रने वाले !

Wednesday, April 14, 2010

प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !

मुखारविन्दु पर जमा खुमार स्वेद विन्दु सा !
है कुन्तलों के मेघ में प्रदीप्त रूप इंदु सा !
शिथिल प्रचंड वेग है न किन्तु देह क्लांत है !
अदम्य कामना विवर्त कर रहे अशांत हैं !
सुरति निवृत्त देह है विश्लथ ज़रा थकान से !
समेट पर तमाम ज्यों रुका विहग उड़ान से !
है यामिनी विगत दिगंत पर उदीय भोर है !
प्रणय प्रमाद से परन्तु तृप्त पोर पोर है !
प्रतीति प्रीति की नयी समस्त बंध तोडती !
रुधिर प्रवाह ऊष्म से शिरा बदन झिंझोड़ती !
ह्रदय की मात्र कामना न रात ये समाप्त हो !
औ रात का हरेक पल अपार प्रीति व्याप्त हो !
मदालसा निगाह से कशिश के गीत बह उठे !
अभी न जाओ छोड़ के, प्रत्येक अंग कह उठे !
ये ज़िन्दगी हसीनतर इसी तरह तमाम हो !
तुम्हार अंक में उषा, तुम्हारे संग शाम हो !
सुहाग की ये शर्वरी प्रणय भरी अनंत हो !
तुम्हार साथ आदि हो, तुम्हारे साथ अंत हो !